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सुनीता यादव कहती हैं: अब पढ़ाई घर तक आती है

Jun 12, 2025

शिक्षा सिर्फ बच्चों की ज़रूरत नहीं होती, वह एक माँ की उम्मीद भी होती है। जब बच्चा पहला अक्षर सीखता है, तो उसके साथ माँ भी एक नई भाषा, एक नया सपना और एक नया विश्वास सीखती है। पहले के दौर में, जब माँ खुद अधूरी शिक्षा की झोली लेकर ज़िंदगी में आगे बढ़ती थी, तब वह चाहती थी कि उसका बच्चा उस अधूरेपन को न दोहराए।

सुनिता अपनी बेटी ऋषिका के साथ

आज जब देश में शिक्षा को लेकर गंभीर पहल की जा रही है — खासकर निपुण भारत कार्यक्रम के तहत — तो यह बदलाव सिर्फ बच्चों तक सीमित नहीं है। यह बदलाव माँ की संतुष्टि और आत्मविश्वास में भी झलकता है। ऐसी ही एक माँ हैं सुनीता यादव, जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के जूडियान गाँव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची ऋषिका की माँ हैं।

मेरी बच्ची ऋषिका अभी कक्षा एक में पढ़ती है। वो स्कूल बहुत मन लगाकर जाती है। घर आकर बताती है कि आज मैडम ने क्या सिखाया, क्या खेला और क्या नया जाना।”

सुनीता यादव कहती हैं: पहले के स्कूलों में इतनी सुविधाएँ कहाँ थीं? अब तो कॉपी, किताबें, ड्रेस, जूते-मोज़े, सब कुछ मिलता है। बच्चा स्कूल में पढ़ भी रहा है, खेल भी रहा है, और टेक्नोलॉजी से भी जुड़ रहा है।

जब सुनीता यादव अपने बचपन को याद करती हैं, तो उनके स्वर में एक हल्की पीड़ा और साथ ही एक संतोष झलकता है. वे बताती हैं की हम जब पढ़ते थे, तो छठी कक्षा में जाकर ABCD सीखा। स्लेट पर ही लिखते थे। न कॉपी थी, न किताब। अब तो बच्चों को LKG-UKG से ही सब सिखाया जा रहा है।

यहाँ सुनीता यादव मौजूदा शिक्षा प्रणाली में आए मूलभूत बदलाव को रेखांकित करती हैं: “हमारे ज़माने में होमवर्क नहीं मिलता था, क्योंकि हम लोग ‘पटरी’ यानी स्लेट पर लिखते थे। उस पर होमवर्क कैसे दिया जाता? लेकिन अब बच्चों को कॉपी पर लिखाया जाता है, जिससे वे स्कूल से होमवर्क लाते हैं और घर पर उसे पूरा करते हैं।”

यह बदलाव सिर्फ सामग्री का नहीं, बल्कि शिक्षा को घर तक ले जाने के प्रयास का भी संकेत है। अब बच्चों की पढ़ाई केवल स्कूल की चारदीवारी तक सीमित नहीं, बल्कि घर तक पहुँच गई है। सुनीता यादव अपने अनुभव से एक और बदलाव की तरफ ध्यान खींचती हैं: हमारे पास घर में बड़ा मोबाइल नहीं है, लेकिन स्कूल में जब प्रोजेक्टर पर पढ़ाई होती है, तो बच्ची को बहुत मज़ा आता है। वो स्क्रीन पर चीज़ें देखकर जल्दी समझती है। इससे स्पष्ट होता है कि डिजिटल शिक्षा और सुनियोजित अधिगम अब गाँवों तक पहुँच चुका है। यह अब केवल शहरी बच्चों का विशेषाधिकार नहीं रहा।

ऋषिका FLN सत्र के दौरान एक गतिविधि में भाग लेती हुई

सुनीता यादव इस बात को लेकर भी जागरूक हैं कि माता-पिता की भूमिका अब पहले से ज़्यादा ज़रूरी हो गई है। वे मुस्कराते हुए बताती हैं: मैडम लोग जब पेरेंट्स मीटिंग में कहती हैं कि होमवर्क घर पर कराइए, तो हम ध्यान देते हैं। जब खाना बनाती हूँ, तब बच्ची को पास में बैठाकर होमवर्क कराती हूँ।

वे आगे जोड़ती हैं: शिक्षा से ही बच्चे आगे बढ़ेंगे, अच्छे इंसान बनेंगे। और यही तो हम माँ-बाप की सबसे बड़ी कमाई होती है। सुनीता यादव की कहानी केवल एक माँ की नहीं, बल्कि निपुण भारत की ज़मीनी सच्चाई की गवाही है। जब शिक्षा घर से होकर बच्चों की कॉपी तक पहुँचने लगे, तब समझिए — बदलाव सिर्फ नीति में नहीं, नियत में भी आया है।

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